Sunday, October 7, 2007

सतरंगी ख्वाब....

क्यों,
खो जाता हूँ मैं अक्सर-
उन सुनहले सपनो में-
जिन्हे बुना था हमने-
साथ-साथ.

क्यों,
दूर तक चला जता हूँ-
यादों के घने जंगल में
नंगे पाँव-
किसी भी वक़्त।

क्यों,
देता है एहसास -
अपनेपन का,
तुमसे जुदा कुछ भी-
ख़ुशी या गम।

क्यों,
नीद में भी ,
तुम्हारा नाम रेंग जाता है-
मेरे अधरों पर -
अनायास ही।

क्यों,
पोछता रहता हूँ,
अतीत के मटमैले पन्नों को-
हमेशा...... बार-बार-
ना चाहते हुये भी।

क्यों ,
महसूस करता हूँ-
तुम्हारे होंठों से छलके -
हर एक अलफ़ाज़ को ,
गूंजते हुए अपने चारो तरफ...

क्योँ,
भूलना नही चाहता -
वो सभी सतरंगी ख़्वाब-
जिसमे आती हो तुम -
हर दिन मेरी बनके।

क्यों,
करता हूँ मैं-
इंतज़ार तुम्हारा,
जानकर भी की अब
हमारे रास्ते अलग हैं।

क्यों ,
फिर भी कभी- कभी-
मना लेता हूँ खुद को-
कि मुझे तुमसे प्यार नहीं!

1 comment:

bhupendra said...

bhaisahab jiska intazar hai apko jaroor milege. aapna dard nikal diya aapne. jaari rakhe.