Monday, December 21, 2009

कार्तिक तूने क्या किया!


-अभिषेक सत्य व्रतम्
ये देश क्रिकेट के उन प्रेमियों का है जो क्रिकेट को सिर्फ एक खेल की तरह नहीं बल्कि जंग के नजरिए से देखते हैं और उस जंग में सचिन तेंदुलकर शामिल होतें हैं महाभारत के भगवान श्रीकृष्ण की तरह। और भगवान को दुखी देखकर जैसे भक्त नाराज होते हैं वैसे ही अपने देश में सचिन को दुखी होते देखकर क्रिकेट प्रेमियों का दिल बैठ जाता है। तभी तो तब कार्तिक ने ललचाती गेंद पर बेहतरीन टाइमिंग के जरिए गेंद को सीमारेखा के बाहर पहुंचा तो क्रिकेट प्रेमियों ने माथा पकड़ लिया। अबे रोक लिया होता...''छक्का मारने की क्या जरूरत थी...स्साले बड़ा बैट्समैन बनने चला है.'' शॉट की तारीफ करने की बजाए दिनेश कार्तिक को एसे विशेषणों से नवजा दिया गया। सचिन के चेहरे से साफ था कि शतक के दहलीज तक पहुंचकर वापस लौट आना कितने दुख की बात होती है। तभी तो जीत के बाद न तो जीत की खुशी थी। उत्साह गायब था, सचिन ने कार्तिक को गले तक नहीं लगाया। दूर से ही हाख मिलाकर महज औपचारिकताओं को पूरा कर लिया। सभी दुखी थे कि काश कार्तिक का बल्ला न चला होता तो सचिन की झोली में एक और शानदार सैकड़ा दर्ज हो जाता। सचिन एक महान प्लेयर हैं और उनकी महानता को बयान करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम उनकी तारीफ में कोई विशेषण न लिखें। उन्हें भी दुख तो होगा सैकड़ा से 4 रन दूर रह जाने का लेकिन निश्चित तौर पर इस बात की खुशी ज्यादा होगी कि देश जीत गया। सचिन को शायद इन 4 रनों से उतना फायदा नहीं होगा जितना कि टीम में जगह बनाने की कोशिश में लगे दिनेश कार्तिक को उनकी तेज तर्रार पारी से होगा। हालांकि कार्तिक ने जानबूझकर सचिन का जायका खराब करने की कोशिश नहीं की, लेकिन बॉल ही एसी थी कोई भी लालच खा जाए। इसलिए बेहतर यही होगा कि क्रिकेट को एक टीम गेम के तौर पर देखना हम शुरू कर दें। हां एक बात ये है कि अगर सचिन कोई और सेंचुरी नहीं बना पाते हैं तो दिनेश कार्तिक को याद करने वालों की संख्या और बढ़ जाएगी। ठीक उसी तरह जैसे कि 1998 के इंडिपेंडेंस कप के फाइनल में चौका मारकर भारत की झोली में ट्रॉफी डालने के लिए रिशिकेष कानितकर को याद करते हैं। फर्क बस यही होगा कि दिनेश कार्तिक को यादकर के लोगों को अफसोस होगा। आखिर 'भगवान' को नाराज करने वाले को लोग कैसे माफ कर सकते हैं!