Monday, November 10, 2008

दादा!! हम तुम्हे यूँ भुला न पाएंगे....

सौरव गांगुली ने सन्यास ले लिया. सच पता है; दिमाग ने भी इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया है, लेकिन दिल अभी भी नहीं मान पा रहा है की उस सख्श ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया है जिसके लिए ये खेल सिर्फ़ बल्ले और गेंद से खेला जाने वाला खेल नहीं बल्कि जीवन का फलसफा था. एक ऐसा खेल जिसे सौरव ने बहुत कुछ दिया, अपने पसीने , अपने तेवर, हमेशा जूझने वाले अंदाज़ के लिए जाने जाने वाले सौरव ने क्रिकेट को आखिरकार बाय बोल ही दिया. सिफर से शिखर तक की यात्रा करने वाले सौरव के लिए सबसे अच्छी बात ये है की इस खिलाड़ी ने जिस अंदाज़ में खेल को छोड़ने का फ़ैसला किया उसे हमेशा याद रखा जाएगा. भले ही सौरव ने बहुत खामोशी के साथ क्रिकेट को छोड़ने का फ़ैसला कर लिया, लेकिन उनका बैट हमेशा इस बात की गवाही देता रहेगा की ये फ़ैसला वाकई सौरभ ने दिल से नहीं लिया.
सौरव ने भले ही कह दिया की एक दिन सबको छोड़ना होता है, लेकिन उनका प्रदर्शन इस बात का अहसास सबको दिलाता रहेगा की वस्तव में सौरव ने फ़ैसला तहे दिल से नहीं किया. ये एक ऐसा मजबूरी भरा फ़ैसला था जिसे यथार्थ का जामा पहनाया गया. सौरव वास्तव में थके नहीं थे, बूढे भी नहीं हुए थे, उन्हें थका दिया गया. उन्हें इस कठोर फैसले को अपनाने के लिए मजबूर कर दिया गया. आख़िर कब तक एक लड़ाका बैट से बोलने के बावजूद भी इतनी आलोचनाओं का सामना कर पाता? ऐसा नहीं है की ख़ुद सौरव ने भी इस सच को स्वीकार कर लिया था की उनका बैट खामोश हो गया, लेकिन सौरव ने भारतीय क्रिकेट के उस सच को स्वीकार कर लिया जिसका कोई आधार नहीं है, कोई पैमाना नही है, जिस सच को भारतीय क्रिकेट के आका ही सच करार देते हैं और बाकी दुनिया बस उसे सच मानने के सिवाय कुछ कर नहीं पाती. एक ऐसा सच जिसके लिए ना किसी सुबूत की ज़रूरत है न किसी गवाह की. सौरव ने उस सच के सामने आखिरकार हथियार डाल ही दिया. उनका बल्ला तो लगातार गरज रहा था. पूरे क्रिकेट जगत ने उनके बैट के स्वीट स्पॉट से छलके हर एक शोट को सुना लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में क्रिकेट की बागडोर सँभालने वाले आराजक निकले. उन्होंने सौरव को बाहर करने की ठान ली थी. आखिरकार क्रिकेट प्रेमियों से लेकर समीक्षकों तक की लगातार वाहवाही लूट रहे सौरभ को वन डे टीम से बाहर कर ही दिया गया. दो साल पहले जब सौरव को टीम में शामिल नहीं किया गया था तो सौरव ने हार नहीं मानी थी लेकिन अब की सौरव मान गए. वो समझ गए की अब इस रात की सुबह नहीं है. क्यूँकी जब किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन को ही नकार दिया जाए तो उसके पास रास्ता ही क्या बचता है? सौरव ने कड़वे झूठ को मीठा सच समझ के निगल लिया और क्रिकेट को कह दिया अलविदा....
सौरव गांगुली भले ही अब क्रिकेट के मैदान में न नज़र आए, हो सकता की वक्त के तकाजे में हम उन्हें भूल जायें. लेकिन ये आँखे हमेशा ढूँढती रहेंगी ऑफ़ साइड में लगाये गए उनके सैकड़ों मखमली शॉट्स, एक ऐसे खिलाडी को जो जीत के नशे में खो जाने को हमेशा तैयार रहा, एक ऐसे इंसान को जिसने अपने भरोसे के दम पर कई ऐसे हीरों को तराशा जो आज भी अपनी चमक बिखेर रहे हैं.