पहले मैच में ग्राउंड कन्डीशन ठीक ना होने के बावजूद आस्ट्रेलिया ने ३०० से ऊपर का लक्ष्य रखा पर अहो भाग्य हमारे बैटिंग की नौबत ही नही आयी। दूसरा match भारत ने घुटने टेक दिए. तीसरे मैच का हश्र भी कुछ ज्यादा जुदा नही रहा। सधी हुई शुरुआत के बावजूद टीम इंडिया ने ऐसा गोता खाया की पुराने दिनों की याद फिर से ताजा हो गयी। हमारी टीम दोनो मैच हारकर बैक फूट पर है ऐसे में एक सवाल उठना लाजिमी है की आख़िर क्या वजह है की जीतना तो दूर २०० का आंकना भी पार करने में २०-२ओ के इन शेरो को नाकों चने चबाने पडे। हालत तो अर्श से फर्श वाली हो गयी है। देखकर विश्वास नहीं होता की क्या ये वही टीम है जिसके सारे दांव सही पड़ रहे थे , एक से एक चौकाने वाले प्रदर्शन के बाद धोनी के कप्तानी को इतना सराहा गया की पिछले सारे कप्तानों की चमक फीकी हो गयी। धोनी की चमक एकाएक बढ़ गयी। लेकिन धोनी शायद भूल गए हैं की अब उन्हें दनादन ही नहीं बल्कि फ़टाफ़ट क्रिकेट की जिम्मेदारी भी सौंप दी गयी है। जगह बदला , सीरीज बदली, टीम के कुछ खिलाडी भी बदले, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है धोनी की कप्तानी का अंदाज़। वो तो अभी उसी में रमे हुये हैं-२० दिन की चाँदनी में।
अब भैया धोनी भी क्या करे!!!! टीम ही ऐसी मिल गयी है । चलाना तो मुश्किल होगा ही । टीम में तीन बुड्ढे भी आ गए हैं.अब खुद से इतने उम्रदराज़ धुरंधरों को आदेश देना भला आसान काम है क्या?? नही ना!! ऊपर से जिस खिलाडी पे अपने धोनी भैया को सबसे ज्यादा भरोसा था वो भी तो टीम में नहीं है ना.(जोगिन्दर शर्मा)..कुछ लोग सारा दोष धोनी को ही दे रहे हैं। ये सही है क्या!!! कुछ तो टीम चुनने वालो के बारे मे भी सोचना चाहिऐ। एक टीम में इतने सारे ओपनर बैट्समैन... बाप रे बाप॥ ले देकर एक ही - ठाक मध्य क्रम का बल्लेबाज बचा है टीम में पर उसकी भी ग्रह दशा कुछ ठीक नहीं है। कप्तानी छोड़ने के बाद गुमसुम सा रहने लगा है। ना बैटिंग अच्छी हो रही है ना फील्डिंग। भाई !!सदमे से उबरने मे कुछ वक़्त तो लगेगा ही। तब तक तो भगवान ही मालिक है ... धोनी क्या-क्या करे। हाँ... बोलिंग ब्रिगेड की बात ना ही करें तो ही बेहतर है... फालतू में वक़्त जाया होगा.... ये किसी के कहने से नहीं सुधर सकते। लगे रहो........... खुमारी उतरने वाली है...
The worldwide economic crisis and Brexit
8 years ago
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