Saturday, September 8, 2007

जिन्दगी- इलेक्ट्रोनिक डिवाइस कि तरह

जिन्दगी के कैनवास पर
हम कभी- कभी-
यूं ही लगने लगते हैं ,
किसी ऐसे इलेक्ट्रोनिक डिवाइस कि तरह-
जिसे म्यूट कर दिया गया हो।
फंक्शन तो सारे के सारे-
ज्यों के त्यों चलते रहते हैं,
सिर्फ आवाज़ नहीं निकलती-
ना जागने की, ना सोने की,
ना कराहने की, ना मुस्कुराने की-
ना गुदगुदी करने से-
आने वाली हंसी की।
ना ही किसी ख़ुशी से -
बदन में होने वाली सनसनाहट की .....
यहाँ तक कि-
जिंदा रहने की भी नहीं।
फिर भी हम -
चलते रहते हैं,
लुढ़कते रहते हैं......
इस आस में कि -
कोई तो मिलेगा रास्ते में
जो समझेगा हमारे -
कुम्हले - छटपटाते हुए -
एहसासों को -
और..... भंग कर सकेगा हमारी चुप्पी
अपने अच्छे से " रिमोट कण्ट्रोल" से।

1 comment:

रश्मिरथी said...

abhi-abhi tumara blog check kiya. doosara wala to maine pehle hi padha tha, lekin "CRAZY KIYA RE" to waakai crazy karne wala hai.By d way i m waiting for d nxt one n i don't want to reveal in dis comment what i want becoz u know very well what i like in your creations(poems). ravi